Wednesday, August 21, 2013

जीने का कारन

मेरे मुस्कुराने का कारन हो तुम 
तन्हाई में गुनगुनाने का कारन हो
तपती दोपहर में बरसते सावन में 
भीड़ में और दूर तलक 
वीरान उदास राहों में 
कभी फूलों भरी और 
कभी छितराए हुए काँटों में
बेपरवाह चलते जाने का कारन हो तुम 
जब कभी तन्हाई मुझे सताती है 
दिल को झकझोरती है और 
आत्मा को जलाती है 
लेकिन वो भूल जाती है 
उसके साथ-साथ तुम्हारी याद 
हर लम्हा मुझे सहलाती है 
और अहसास ये होता 
तुम मेरे साथ हो 
जीवन के हर सफ़र में 
ऊँची-नीची हर डगर में 
मेरे ख्यालात हो 
निराशाओं के सूने सज़र में 
एक जज्बात हो जो हर छन मुझे 
बिना थके बिना रुके 
चलने को कहता है 
और साथ रहता है मेरा साया बनके 
अक्सर ऐसा मक़ाम भी आता है 
जब ठहर जाने को जी चाहता है 
थक जाते है कदम 
टूट के बिखर जाने को जी चाहता है 
उस पल हाथ मेरा थाम कर 
तुम क्षितिज़ को निकलती हो 
मैं मंत्रमुग्ध सा देखता हूँ तुम्हें 
एकटक-अपलक 
और बसा लेना चाहता हूँ 
अपनी आँखों में सदा के लिए
काश ये वक़्त ठहर जाये
ये लम्हा यूँही ना गुजर जाये     
तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ है 
जीवन यूँही बसर जाये 
   ...................बृजेश 

Saturday, February 23, 2013

उधर वो परेशां इधर मैं भी हैरां

उधर वो परेशां इधर मैं भी हैरां 
ये कैसी जुदाई का मौसम आ गया 
अभी कल तलक तो रौशन था आलम 
न जाने कैसा अँधेरा छा गया 
मुहब्बत तो इबादत है रब की 
क्यों मेरे-रब के दरमियाँ ज़माना आ गया 
न पवन संदेशा लाती है न पेड़ झूम के गाते है
जिनसे गुजरते थे 'वो' रास्ते भी मौन हैं
जर्रा-जर्रा जैसे दुश्मनी निभाने आ गया   

Thursday, February 21, 2013

अँधेरों के साये घनेरे हुए


अँधेरों के साये घनेरे हुए 
हम डाल के पंछी 
बिन बसेरे हुए 
बुझ गई खुशियाँ सारी जीवन की 
सुलगते हुए गम सिर्फ मेरे हुए 

Tuesday, February 19, 2013

ये किस मकाम पे ले आयी है मुहब्बत मुझे

ये किस मकाम पे ले आयी है मुहब्बत मुझे 
तुम बिन रहा भी नहीं जाता 
तुमसे कुछ कहा भी नहीं जाता
काश मेरी आँखों में पढ़ो तुम 
मेरे दिल के जज्बात 
दिल की धड़कन समझाये 
तुम्हें मेरे हालात  

Monday, February 18, 2013

कहाँ लिखूँ तेरा नाम दुनिया से छुपाके

कहाँ लिखूँ तेरा नाम दुनिया से छुपाके 
कुछ भी तो नहीं मेरे पास जो नुंमाया ना हो 
अपनी काया के कण-कण में देखा 
ऐसा भी तो कुछ नहीं जिसमें तु समाया ना हो 
मेरी पलकों की परछाईयों में 
मेरे दिल की गहराईयों में 
मेरे अन्तर्मन में 
और मेरे जीवन की तन्हाईयों में 

Saturday, February 16, 2013

रात फिर तुम सपने में आये

रात फिर तुम सपने में आये 
हौले से देखा मुझे और मुस्कुराए 
नजर में था वही इक सवाल 
होंठ भी थोड़ा थरथराए 
कब तक-कब तक 
तन्हाई की आग में झुलसता रहूँगा 
कब तक तेरी दीद को तरसता रहूँगा 
काश कभी साँझ ढले और तुम चली आओ 
कभी पूरी होगी मेरे मन की आस 
या सदा रहूँगा युहीं उदास